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Maa ka dil kabhi naa dukhana

Posted by Avinash Singh at 12:09 0 Comments

एक सुनार था। उसकी दुकान से
मिली हुई एक लुहार की दुकान थी।
सुनार जब काम करता, उसकी दुकान
से बहुत ही धीमी आवाज होती, पर जब
लुहार काम करता तो उसकी दुकान से
कानो के पर्दे फाड़ देने
वाली आवाज सुनाई पड़ती।

एक दिन सोने का एक कण छिटककर
लुहार की दुकान में आ गिरा।
वहां उसकी भेंट लोहे के एक कण के
साथ हुई।
..
सोने के कण ने लोहे के कण से कहा,
"भाई, हम दोनों का दु:ख समान है।
हम दोनों को एक ही तरह आग में
तपाया जाता है और समान रुप से
हथौड़े की चोटें सहनी पड़ती हैं।
मैं यह सब यातना चुपचाप सहन
करता हूं, पर तुम...?"

"तुम्हारा कहना सही है, लेकिन
तुम पर चोट करने वाला लोहे
का हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई
नहीं है, पर वह मेरा सगा भाई है।"
लोहे के कण ने दु:ख भरे स्वर में
उत्तर दिया।

फिर कुछ रुककर बोला, "पराये
की अपेक्षा अपनों के द्वारा गई
चोट की पीड़ा अधिक असह्म
होती है।"

माँ का दिल कभी मत दुखाना

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